भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

म्हारो गांव : अेक / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आस रो डूंगर है
म्हारो गांव
इण रा भाखर
टूटै नीं किणीं सूं
ईसर-परमेसर
परकत खसै तोड़ण
जुगां सूं
म्हारै गांव में।

अठै
अटल ऊभी है
रेत रै कण-कण
जीया-जंत में
उतरती-पळती
पीढी दर पीढी
भरोसो बंधावती
अमर है आस
म्हारै गांव में!