साथिन ने बताये थे
कुछेक किस्से
कि स्कूल-कॉलेज के दिनों में
कैसे वह भाई की प्रेमिकाओं तक
छिटपुट-पुरचियाँ पहुँचाती रही थी
वह अब भी पहचानती है
लगभग उन सभी प्रेमिकाओं के नाम-पतें
और राज़ कुछ उनके मध्य के
ये सब बताते हुए
पहले तो लम्बी शरारती मुस्कान थिरकी
फ़िर लगा
जैसे गझिन उदासी कांधों पर उतरी आई है
पूछा तो
पल्लू झाड़कर उठ खड़ी हुई
अब इतनी भी भुलक्कड़ मैं भी नहीं
कि याद न रख सकूँ
उसकी वो दीन-हीन कपकँपी
जो नैतिक शास्त्र की किताब के बीच
मिले एक खुशबूदार गुलाबी ख़त से छूटी थी
जिसे सिर्फ एक बार ही देखा..
आधा-अधूरा पढ़ भी लिया था शायद
फ़िर तिरोहित किया
ऐसा उसकी एक साथिन ने फुसफुसाया था
ऐसे अवसरों पर उसे
भाई याद आ जाता था
"तू अगर गलत नहीं तो पूरी दुनिया से लड़ लूँगा!"
उस गर्वोक्ति को मन ही मन दुहराते हुए
उसने हर बार
प्रेम को बहुत गलत समझा
और दुनिया को प्रेम-युद्ध की मुफ़ीद जगह!
लेक़िन भाई की प्रेमिकाओं के पते बदस्तूर याद रहे।