भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यमलार्जुन उद्धार / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिवस पुनि बाल कृष्ण उठि दैत ठेहुनियाँ जाय
फोड़ल घट फाड़ल पट माखन मटुकी धरि उनटाय
किछु धयलनि मुह लेप लगौलनि नेनु खसौलनि भूमि
अटपट करइत चटपट आङनसँ दलान धरि घूमि
देखल माय यशोदा करतब, रोस भरल चित रोर
भारी भड़कम उखड़ि लगहि छल डोरिक कयल सङोर
कटि किंकिनि रुनझुन बजइत से बंद उखड़िकेर बंध
ससरि सकथि नहि, चंचलमतिया नटखट शिशु निर्द्वन्द
कने काल धरि संच - मंच छल, पुनि किछु शब्द कुढंग
खर-खर घर्घर गुड़कि रहल छल ऊखरि शिशुकेर संग
ध्यान न देल, गेल जननी कहुँ, बालक कहुँ गुड़कैत
यमलार्जुन गाछक दुइ फेड़क बिचहि पहुँचि अड़कैत
घिचल कनेक छनेक, खसल सहसा दुहु गाछ हहाय
क्यौ देखल, क्यौ शब्द सुनल, सब क्यो दौड़ल घबराय
दुइ क्यौ ज्योति-पुरुष बहरायल यमलार्जुन अभिशप्त
शिशु मुकुन्दकेर चरण पकड़ि स्तुति कय अन्तर्हित भक्त
ओम्हर यशोदा छाती पिटइत दौड़लि करइत हाय
देखलि कृष्ण कन्हैया डोरी तोड़ल गाछ लगाय
कोर उठाय मनाय गोसाउनि रक्षा-कबच पढ़ाय
विप्र लोकनिकेँ देल दक्षिणा, चिरजीबथु दुहु भाय