भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यहाँ मिले सभी हंसने वाले / ओम व्यास
Kavita Kosh से
जितने आँसू पोछे जग के,
उतने आँसू मैं रोया हूँ
हँसा हँसा कर, खून जलाया
और बना मैं वह 'खोया' हूँ
यहाँ मिले सभी हंसने वाले
रुके, हँसे और चले गये
सबको नींद सलोनी आई
जाग जागकर मैं सोया हूँ।