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यही अभिमान चलल हे / राम सिंहासन सिंह

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चढ़ल जवानी हे गरमी के,
चारो ओर लहर हे,
अंग-अंग में आग लगल हे,
पछेआ जोर चलल हे।।
संउसे बदन सुख गेल हे
मुँह के जोत जरल हे।
मानो ई धरती पर अब तो,
मउत के गाज गिरल हे।।
सूख गेल हे ताल-तलईन
अहरा पोखरा होयल बेहाल।
नदियन के उतरल सिंगार हे,
नाला-नाली होयल बेयाल।।
फटल दरार हे खेतवन में
चिंरई-चिरगुन हो रहलन घायल।
कंकड़-पत्थर फोड़-फुंसी
जगह-जगह हे छितरायल।।
तपईत धरती के तपन से
सबके आँख भरल हे।
माल-मवेसी, चिरई-चिरगुन
पर भी होयल कहर हे।।
घास-पात से पेड़-पौधा तक
सबमें भय जगल हे।
कब आयत अब बरखा रानी
यही अभियान चलल हे।