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यह आदमी / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
मृतकों की तरफ पीठ किये
निविड़ बेशर्म झाड़ियों में
अपना चेहरा छुपाए
न पक्ष
न ही विपक्ष में
भूत की तरह
कैसा उल्टा लटक रहा है?
बर्बरता के खिलाफ
उसके पास शब्द नहीं
राजनीति से परहेज की राजनीति करता
कितना निष्फिकर है अपने खोल में
सुरक्षित नहीं है कुछ भी
न जंगल
न नदी
न मनुष्य
न पहाड़
कितने मजे से उछालता मुहावरे
किसी और दुनिया के
कैसे जी लेता है यह आदमी कला में