यह इस दुनिया की ताक़त है / संजय चतुर्वेदी
ये कहानी उन लोगों की है जिन्होंने घर छोड़ दिए
जिन्होंने मजबूरी में और स्वेच्छा से वे सारी चीजें अपनायीं
जो अभागी थीं
जो अंधेरों से होकर उत्तरी ध्रुव तक पहुंचे
और अगले प्रकाशवर्षों पर दस्तक दी
जिन्होंने गाड़ दिए अपने दोस्त
जब वे बचाए नहीं जा सके
और उनके बच्चों की तरह हल्के होकर
उनके विरसे का वजन लेकर आगे बढ़े
जिन्होंने फिल्में बनायी और डायरियां लिखीं
हालांकि उनका बुनियादी सरोकार
न तो सिनेमा था, न शब्दों की दुनिया
जो अपने घरों में रहे
जैसे दुनिया में रह रहे हों
जिन्हें छोटी-छोटी बातों को समझाने के लिए
मुश्किलें पेश आयीं इस शाश्वतत्व के साथ
कि देर-सबेर लोग समझते हैं
और यह इस दुनिया की ताकत है और वे इसी ताकत से पैदा हुए
और न तो कुछ भी नष्ट किया जा सकता है
और न ही कुछ स्थायी है
जिन्हें कुछ सौ या कुछ हजार साल बाद पुनर्जन्म मिला
कि जो मरते हैं वे पैदा भी होते हैं
और वे पूर्वजन्म के वरदानों और श्रापों को
साथ लेकर चलते रहे
जो कुछ सौ साल बाद होने वाले अपने पुनर्जन्म को देख सके
ये कहानी उन लोगों की है
जो इसलिए भी वर्तमान के लिए चिंतित थे
कि जो वर्तमान है, वही भविष्य होगा
कि भुला दिए जाने का कोई अर्थ नहीं है
क्योंकि कुछ भी भुयाजा जा नहीं सकता
जो किसी भी चीज को त्याग नहीं सके
ये कहानी उन लोगों की है
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