भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह तेरी सौगात नहीं / महेश चंद्र द्विवेदी
Kavita Kosh से
इस दिल के बुलाने पर तुम नहीं आये कोई बात नहीं
मेरे पैगाम पर हँस कर खिल्ली उड़ाई‚ कोई बात नहीं
मेरे दावतनामे को कानी आँख न देखा‚ कोई बात नहीं
मेरी शामों को वीरान–बियावान बनाया‚ कोई बात नहीं
मेरी चौखट तुम्हारे कदमों की सरहद है‚ कोई बात नहीं
मेरी मय्यत में शामिल न होने की ज़िद है‚ कोई बात नहीं
अपने ख़यालों तक में मेरा ज़िक्र न आने देना‚ कोई बात नहीं
बस आँख से ढलके आँसू के लिये न कहना‚ यह तेरी सौगात नहीं।