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यह पथ-1 / सुधीर मोता
Kavita Kosh से
सुनो रुको
देखो इस ओर
यह स्वर है जीवन की गाड़ी के
हहरा कर चलते जाने का
यह देखो यह
उड़ती धूल
यह छिपकर
पदचापों का
अपने को ही
ढाँक-मूँदकर
इतराते छलते जाने का
यह टहनी पर पत्तों के
आने-जाने का
सतत प्रवाह
और उगे एक दिन
फिर आने को
रह-रह कर झरते जाने का।