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यह शोर बहरा कर देगा / प्रदीप मिश्र

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यह शोर बहरा कर देगा


समय-समय की बात है
एक समय मे सच-सच होता था
और झूठ-झूठ

फिर झूठ सच में बदलने लगा
और सच झूठ में

यहाँ तक तो समझ में आती थी
सच और झूठ की जुगलबंदी

जबकि सब जानते थे
झूठ कभी पूरा झूठ नहीँ होता
सच कभी भी पूरा सच नहीं

काल-काल की बात है
हम सब मनुष्य थे
स्नेह से ओत-प्रोत
इतने निश्छल और पारदर्शी कि
सुख-दुःख आर-पार होते रहते थे
और हम यथावत्

फिर मनुष्यो में कुछ अति मनुष्य
कुछ महा मनुष्य
और कुछ सिर्फ मनुष्य रह गए

इनके स्नेह हो गए अलग-अलग
इनकी निश्छलता भाप बनकर उड़ गयी
और अंदर इतनी धुंध भर गयी
कि कुछ भी पारदर्शी नहीं रहा
दुःख कुछ मनुष्यों के अंदर स्थाई रूप से बस गया
और सुख कुछ लोगों का गुलाम हो गया

सबको पता है कि
दुःख कभी भी स्थाई रूप से नही बसता
और सुख तो कहीं बस ही नहीं सकता

युग-युग की बात है
एक युग में प्रकृति प्रधान थी
एक में धर्म
एक में विज्ञान प्रधान हुआ
और इस युग में बाजार

सबको पता है कि
बाजार हर युग में प्रधान रहा है
जिसमें प्रकृति-धर्म-विज्ञान को
चाकरों की तरह डोलते रहना पड़ता हैं

यह हमारे समय की बात है
जब काल और युग क्षण में बदल गए हैं
प्रकृति-धर्म-विज्ञान-दुःख-सुख-सच-झूठ
इनको दर किनार कर दिया गया है
खेत बेमानी हो गए हैं
और उद्योग अगरा रहे हैं
चारो तरफ हो रही है गर्जना
उत्पाद-उत्पादन और उपभोक्ता

सबको पता है
भले ही
पहने हों ईयर प्लग
यह शोर बहरा कर देगा।