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यह समय की धुन्ध / कृष्ण शलभ
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यह समय की धुन्ध जो है
हारकर छँट जाएगी
फिर नज़र आएँगे तुझको
काफ़िले विश्वास के
फिर जनेंगे चेतना में
हौसले आकाश के
मन के कोने में पड़ी
अन्धी निशा हट जाएगी
शब्द का सम्मान होगा
बात कुछ आगे बढ़ने
कामना की वल्लरी फिर
कर्म की सीढ़ी चढ़ेगी
जिस्म पर छाई हताशा
हाँफ कर फट जाएगी
सत्य के जोखिम हटेंगे
झूठ निष्कासन सहेगा
जोश में भी हर इक
होश का सम्बल रहेगा
इस घड़ी को युक्तियों से
काट ले, कट जाएगी