कभी
उसके साथ सिर्फ
एक कॉफी का कप भर
पिया था मैंने
और देखता हूँ तब से
धीरे धीरे
मेरे भीतर
एक और याद का घर
आबाद हो गया
मेरे देखते- देखते
उस याद ने
मुझसे बिना पूछे
अपने उस छोटे से घर में
अपनी मर्जी के पर्दे
अपनी मर्ज़ी के गुलदान
अपनी मर्जी के फूल लगा लिये
और देखिए मैं
बरबाद हो गया.....