याद नहीं है / हरीश भादानी
चले कहां से
गए कहां तक
याद नहीं है
आ बैठा छत ले सारंगी
बज-बजता मन सुगना बोला
उतरी दिशा लिए आंगन में
सिया हुआ किरणों का चोला
पहन लिया था
या पहनाया
याद नहीं है.....
झुल-झुल सीढ़ी ने हाथों से
पांवों नीचे सड़क बिछाई
दूध झरी बाछों ने खिल-खिल
थामी बांह करी अगुवाई
रेत रची कब
हुई बिवाई
याद नहीं है.....
रासें खींच रोशनी संवटी
पीठ दिये रथ भागे घोड़े
उग आए आंखों के आगे
मटियल स्याह धुओं के धोरे
सूरज लाया
या खुद पहुंचे
याद नहीं है.....
रिस-रिस झर-झर ठर-ठर गुमसुम
झील हो गया है घाटी में
हलचल सी बस्ती में केवल
एक अकेलापन पांती में
दिया गया या
लिया शोर से
याद नहीं है.....
चले कहां से
गए कहां तक
याद नहीं है.....