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याद बचपन के / बिंदु कुमारी
Kavita Kosh से
इंतजार रहै छेलै
बाबू जी रोॅ
कखनी लौटतैं पंचायती सें घोॅर
नासमझ छेलियै तखनी
बाबूजी सेॅ पियार छेलै
मतर कि बाबू जी रॉे साइकिल सेॅ
आरो जादा-
पाँचमी क्लासोॅ मेॅ पढ़ै छेलियै
आरो साइकिल चौबीस इंची।
तखनी कहाँ होय छेलै
साइकिल सबरोॅ घरोॅ मेॅ
बच्चासीनी रोॅ साइज के
जबेॅ धीरे-धीरे बड़ोॅ होलियै
नौकरी लागलै
तेॅ मोटर साइकिल कीनी लेलियै
बाबूजी के साइकिल
आभियों छेबेॅ करै
साइकिल देखियै तेॅ पहिया
बेहद पतला दिखैं-
मोटरसाइकिल रोॅ पहिया रोॅ सामना
ठीक वहिनें ही
जेना बाबू जी
होय चललोॅ छेलै
एक सौ पाँच सालोॅ मेॅ।