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युग-धर्म / शम्भुनाथ मिश्र
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अपने बेटा सबसँ तेजगर सुनि सब अकच्छ छल भेल
अछि अपने बेटी बड़ सुन्दरि सुनि कान पाकि छल गेल
बड़ लुरगरि संकोची विनम्र
बेटीक बखान करैत
‘डैडी’ तँ नहि ‘पापा’ कहितय
अछि ‘बाबू’ स्वयं कहैत
खन पत्नी आबि कहलथिन बुच्ची भागि कतहु चलि गेल
हम फोन-फान कय गेलहुँ थाकि तेँ अयलहुँ कहबा लेल
तावत बाजल फोनक घंटी
चिन्ताक न कोनो बात
कचहरिएमे कयलहुँ विवाह
छी अति प्रसन्न हे तात!