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यूँ न मुझसे रूठ जाओ / शशि पुरवार
Kavita Kosh से
यूँ न मुझसे रूठ जाओ, मेरी जाँ निकल न जाए
तेरे इश्क का जखीरा, मेरा दिल पिघल न जाए।
मेरी नज्म में गड़े है, तेरे प्यार के कसीदे
मै जुबाँ पे कैसे लाऊं, कहीं राज खुल न जाए
मेरी खिड़की से निकलता, मेरा चाँद सबसे प्यारा
न झुकाओ तुम निगाहे, कहीं रात ढल न जाए।
तेरी आबरू पे कोई, कहीं दाग लग न पाए
मै अधर को बंद कर लूं, कहीं अल निकल न जाए।
ये तो शेर जिंदगी के, मेरी साँस से जुड़े है
मेरे इश्क की कहानी, ए गजल भी कह न जाए।
ये सवाल है जहाँ से, तूने कौम क्यूँ बनायीं
ये तो जग बड़ा है जालिम, कहीं खंग चल न जाए।