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ये जहां मेरा नहीं है / मानोशी
Kavita Kosh से
ये जहाँ मेरा नहीं है
या कोई मुझसा नहीं है
मेरे अपने आइने में
अक्स क्यों मेरा नहीं है
उसकी रातें मेरे सपने
कोई भी सोता नहीं है
आँखों में कुछ भी नहीं फिर
नीर क्यों रुकता नहीं है
दिल है इस सीने में, तेरे
जैसे पत्थर सा नहीं है
देखते हो आदमी जो
उसका ये चेहरा नहीं है
एक भी ज़र्रा यहाँ पर
तेरा या मेरा नहीं है