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ये शीर्षक मेरी कविता का नहीं / सरोज कुमार

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ये हाथ:
मेरी चेतना ने नहीं उठाया है,
ये मुस्कान:
मेरी प्रसन्नता की नहीं है!
ये आभार:
किसी अनुग्रह का नहीं है!
ये प्रशंसा:
किसी करतब की नहीं है!
ये नारे:
मेरे संकल्प के नहीं हैं!
ये आवाज:
मेरी आत्मा की नहीं है!
ये हड़बड़ी:
मेरे आवेश की नहीं है!

ये मुस्कान, ये प्रशंसा
ये हड़बड़ी, ये आवाजें
ये नारे, ये नजारे
मेरे जीवन की शैली हैं
"शैली ही जीवन है"–
शेष सभी कुछ कालपात्र में गाड़ दो
जिसे मेरे विरोधी ज़रूर उखाड़ेंगे
और रोएँगे मेरे नाम को!