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ये हैं हम / विपिन चौधरी

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दुनिया भर की लम्बे बालों वाली स्त्रियाँ
सुबह उठने के साथ ही बालों को इक्कठा कर जुड़ा बांधती हैं
गीले बाथरूम को देखते ही खीज उठती है
उनके आंसुओं में जमे हुए नमक के टीले परनालो में बहने लगते हैं
साथ चलते हुए रिश्तों के रास्ता बदलते ही सिर के बल धरती पर आ गिरती हैं
और बुरे समय में अपने नुकीले नाखूनों का सटीक इस्तेमाल करने को मजबूर हो उठती हैं
संसार की सभी स्त्रियाँ

आधी आबादी की भूख को
सलीके से अपने बेलन के नीचें दबा कर
चार- छः बच्चों के मुहं में एक साथ निवाला डाल सकती हैं

चारों ओर घिरी तबाही में भी
एक ओट में
दो ईंट खड़ी कर पेट भरने का इंतजाम कर लेती हैं

और
वे भी हमारे इसी संसार की स्त्रियाँ हैं
पुरुष-प्राणी के घर पर ना रहने पर
जिनकी भूख गायब हो जाती है और
दिन भर दाल-मोठ के साथ चाय सुड़क कर
अगले दिन गोष्ठी में जा कर वे
पितृसत्ता के मुखालफत पर लंबा भाषण दे आती है