भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
योग / गिरधर राठी
Kavita Kosh से
रहस द्वार पर
तनी मुट्ठियाँ
कवच टूटते
रोग-भोग में।
सहज। बावले।
थिर। उतावले।
दीवानेपन
मृत्यु-भोज में।
तपते सैकत
हिमशीतल कण
अचल विकल क्षण
उत्स-खोज में।
अगम-सुगम पथ
निरत-सुरत रथ
क्षर-अक्षर व्रत
योग-योग में।