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योनि हो तो माँ हो / सुभाष राय
Kavita Kosh से
तुमने जब-जब मुझे छुआ है
तुम्हारी उँगलियों को हृदय पर महसूस किया है मैंने
तुम्हारे पास आते ही मुक्त हो जाता हूँ
नसों में दौड़ते हुए विष बवण्डर से
तुमने जब भी मेरे सिर पर हाथ फेरा
मेरे रोम-रोम में उग आई हो सहस्त्र योनियों की तरह
तुम्हारे भीतर होकर सुरक्षित महसूस करता हूँ मैं
तुम्हारा स्पर्श तत्क्षण बदल कर रख देता है मुझे
स्त्री ही हो जाता हूँ,बहने लगती हो मेरे भीतर
पुरुष की अपेक्षा से परे योनि हो तो माँ हो
सर्जना हो, वात्सल्य हो, धारयित्री हो समस्त बीजों की
पाना चाहता हूँ तुम्हारी अनहद ऊष्मा के साथ तुम्हे
तुम्हारे अजस्र विस्तार में, समस्त संसार में