रंगबाज बनाय देॅ / नंदकिशोर शर्मा
हो कक्का, हो कक्का हमरा तोंय रंगबाज बनाय दें
सोलेॅ भर के सोना सिकरी, मठिया मोट देलाय देॅ।
आँख तरेरने गर्दन उच्चा, सीना तान्ने चलबोॅ कक्का
होय उतांग कांख फरकैने, साँझे भोर टहलबोॅ कक्का
हांथ में रहतै बित्ता भर के टच मोबाय्ल देलाय देॅ।
आगू पीछू रमचेलवा सब हों में हों मिलैनें चलतै
केकरो गारी केकरो धोपन केकरो पुस्ट डेगैंने चलतै
गारी-श्राप नै टोकठा लागै ऊ जंतरी देलाय देॅ।
दारू ताड़ी, भाँग धथूरा चीलम सोंट लगैवोॅ कक्का
साँझे भोरे बीच चौक पर दादागिरी देखैवोॅ कक्का
सरकारी रूतवा सैलुट दै, ऊ तिकरम बताय देॅ।
चलौं त छोटका-बड़का काँपै, सेठ सिपाही मोटका काँपै
पास परोसन सुन्दर कन्या देखतें कुतवा जकतें हाँफै
मोड़-मोड़ पर टेक्स बसूली-सर्टिफिकेट देलाय देॅ।
मोटका माला पिन्हवोॅ कक्का, चंदन तिलक लगैवोॅ कक्का
जे घर में छै लड़की सुन्दर झुट्ठो हरदम जेइवोॅ कक्का
चंदन टिक्का गोरखधंधा के सिस्टम समझाय देॅ।
रात-रात नै अइवोॅ कक्का, हरदम खून करैवोॅ कक्का
डागडर, इन्जीनियर साहेब के, मुगलीबाँध चढ़ैवोॅ कक्का
एस-एल-आर, थिरनेट्टा, सिक्सर के डिगरी देलाय देॅ।