रक्त कमल परती पर (कविता) / खगेंद्र ठाकुर
यहाँ, वहाँ हर तरफ
उठे हैं अनगिनत हाथ
हर तरफ से अनगिनत कदम
चल पड़े हैं एक साथ
ये कदम चले हैं वहाँ
बीहड़ पर्वत के पार से
ये कदम चले हैं
गहरी घाटी के अंधियार से
पहाड़ों पर दौड़ कर
चढ़े हैं ये मजबूत कदम
धुएं की नदी पार कर के
बढ़े हैं ये जंगजू कदम
रोशनी के बिना
घोर जंगल है जिन्दगी जहाँ
ये कदम बना रहे हैं
किरणों के लिए द्वार वहाँ
अनगिनत हाथ
उठे हैं जंगल से ऊपर
ये हाथ उठे हैं
पूँजी के दानव से लड़ कर
ये हाथ हैं जो
कोयले की आग में तपे हैं
लोहे जैसा गल कर जो
इस्पात-से ढले हैं
इन हाथों ने
अपनी मेहनत की बूंदों से
सजाया है
पथरीले जीवन को फूलों से
हमने देखा हर हाथ
यहाँ एक सूरज है
हर कदम यहाँ
अमिट इतिहास-चरण है
इन्होंने गढ़ डाला है
एक नया सूरज धरती पर
उगाये हैं यहाँ अनगिन
रक्त कमल परती पर