रचाव रा रंग
हाल खूट्या नीं है।
अजेस बाकी है आवणी
दुनिया री
कीं टाळवीं-
कवितावां।
आ बात छोड़ो
कै कुण लिखैला
बां नै।
पण राखो पतियारो
कै अजेस बाकी है
लिखीजणी
दुनिया री
कीं और कवितावां।
कवियां रै ओळै-दौळै
घूमै है बां री
आतमावां।
पक्कायत देवैला
बै रचाव नै
नूंवां राग
नूंवां रंग।
क्यूं कै बै
हणै ई मुगत है
जीवण
अर
मरण सूं।