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रचो तूलिका प्यार / प्रेमलता त्रिपाठी

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मुक्त कंठ स्पंदन भर दो संसार ।
इंद्र धनुष सी रचो तूलिका प्यार ।

जाग उठेगी अमिट हृदय की प्यास,
तिमिर सिंधु खद्योत बने आधार ।

शंख नाद, वीणा, बंशी कर- ताल
मंदिर - मंदिर दीप जले हर द्वार ।

मनु वंशज तुम क्यों होते दिग्भ्रांत,
तोडो़ मूर्छा जोश भरो हुंकार ।

अस्त्र शस्त्र हो या हो अमल विवेक,
युवा देश के बैठे क्यों सुकुमार ।

चिर परिचित अपना गौरव इतिहास,
रुके प्रलय अब हृदय भरो अंगार ।

करो ध्वनित तुम धरती से आकाश,
रसास्वाद यह निर्मल प्रेम विचार ।