रज़ा (विख्यात चित्रकार)-1 / पुरुषोत्तम अग्रवाल

सागर की साँवरी देह पर चाँदनी
जैसे तुम्हारे साँवरे गात पर आभा
करुणा की, प्रेम की, अपनी सारी बेचैनी को स्थिर करती साधना की
कितना अलग दिखता है समुद्र तुम्हें याद करते हुए
कैसी समझ आती हो तुम
समुद्र को याद करते हुए

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