रपियां की होली / सुन्दर कटारिया
पूरे गाम की नीयत साफ थी, ईरादा नेक था
मोहल्ले दो थे पर भाईचारा एक था।
मेल मिलाप चौखा था प्रीत की खुमारी थी
पर दोन्नूं मोहल्यां की होल़ी न्यारी न्यारी थी।
एक बै मोहल्यां मैं होड़ लागगी जिसकी जितनी ऊंची होल़ी होगी
उस्सै के सिर पै चौध्धर की पाग्गड़ उतनी ए धोल़ी होगी।
दूर खेत्तां मैं गादड़ी रोया करती
होल़ी तै पहलड़ी रात कसूत होया करती।
तो गाम के नौजवान भी ड्यूटी पै लागगे
होल़ी जोड़ण खात्तर पूरी की पूरी रात जागगे।
लकड़ी ठाई कीक्कर की, झुक्ख्ड़ की, बेरी की, नीम की
रात रात मैं बुग्गी डिगा दी भीम की।
हरी के कमरे की खिड़की उखाड़ ले गे
बलवान की ब्हार आल़ी चौक्खट नै पाड़ ले गे।
किसे की खाट तो किसे के पिलंग मार लिये
लिछमीनराण की तो दुकान के किवाड़ भी तार लिये।
श्यामी के तै लाक्कड़ ठाये तो कुत्ता भी घुरका दिया
दादी रूल्हां की तो हुकटी अर पीड्ढा भी सरका दिया।
बिन्दर खात्ती तो ईसा लुटग्या
अक उसका तो रन्द्दे आल़ा तखत भी उठग्या।
बिल्लु की भऊ का पूरा बिटोड़ा डिगा दिया
और तो और रत्ते की बाग्गर का नम्बर भी ला दिया।
किहें का जुआ किहें की घड़ौच्ची किहें की फाल़ी उठगी
दड़ब्यां मैं लागी औड़ लकड़ी की जाल़ी उठगी।
छान छप्परां मैं तै पूल़े तक काढ लिये
कटकड़, खूट्टे अर बूंग्गे तक पाड़ लिये।
रात मैं हर घर तै कुछ ना कुछ ठाया था
पर कोये भी माणस उल्हाणा लेकै नही आया था।
नौजवान राज्जी थे रात की बतल़ाकै
छात्ती चौड़ी होगी थी होल़ी नै ऊंच्ची ठाकै।
बात चौध्धर की ना थी प्यार की थी
वे होल़ी रंगा की थी खुसबु की थी संस्कार की थी।
आज की मानवता रपियां मैं खंगल़ै सै
अर होल़ी तो बस बजार की लकड़ियां पै मंगल़ै सै।