भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रसोई / रामदरश मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोठी हो या सामान्य घर
या फुटपाथ पर का छोटा सा तंबू
उसमें रसोई कक्ष या उसकी जगह की
विशेष महत्ता होती है
सुबह को
सारा घर सिमट आता है उसके आसपास
और चूल्हे की ऊर्जा
उसकी खुशबू
उसकी कल ध्वनि
जीवन बनकर व्याप जाती है पूरे घर में
घर की हर सुबह हँसती हुई
निकल पड़ती है दिन की यात्रा के लिए
घर फिर शाम को हो जाता है रसोईमय
उसकी उष्मा लेकर
वह रात में समा जाता है
और अच्छी नींद में अच्छे सपने देखता है

हाँ रसोई एक सी नहीं होती
किसी में विविध व्यंजन बनते हैं
किसी में सादा खाना
किसी में अंगीठी पर मोटी रोटियाँ सिंकती रहती हैं
यानी कि अलग अलग तरह के चूल्हों की
अलग अलग लय होती है
जो फैलती रहती है घरों की गति बन कर
लेकिन जिस घर में चूल्हा नहीं होता
या होकर भी उदास सोया रहता है
वह घर होकर भी
घर कहाँ होता है
उसमें तो एक उजाड़ सूनापन काँपता रहता है
-23.1.2015