भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रहा नहीं जाए तुम बिन / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
रहा नहीं जाए तुम बिन
दिन कटते हैं गिन-गिन
याद तुम्हारी आए
भूल न पाऊँ पल-छिन
तुम बिन मीन-सा तड़पूँ
मन में दहके अगिन
रातों नींद न आए
यह कैसी लागी लगिन
जीवा तुमसे लागा
टूट न पाए बंधिन
इसी आस में जीवूँ
हम मिल पाएँगे कभिन
(1999)