Last modified on 27 जनवरी 2009, at 20:57

रहे ठगिसे नृपति सुनि मुनिबरके बयन / तुलसीदास

राग नट
रहे ठगिसे नृपति सुनि मुनिबरके बयन |
कहि न सकत कछु राम-प्रेमबस, पुलक गात, भरे नीर नयन ||
गुरु बसिष्ठ समुझाय कह्यो तब हिय हरषाने, जाने सेष-सयन |
सौम्पे सुत गहि पानि, पाँय परि, भूसुर उर चले उमँगि चयन ||
तुलसी प्रभु जोहत पोहत चित, सोहत मोहत कोटि मयन |
मधु-माधव-मूरति दोउ सँग मानो दिनमनि गवन कियो उतर अयन ||