रहे नाम नीम का / दिनेश कुमार शुक्ल
नर्वल का नीम दिखा
दूर अफ्रीका के शहर डकार में
नीम से भी बढ़-चढ़कर
नीम होता हुआ,
और हरा और गझिन
पुष्पित-पल्लवित चरमोत्कर्ष तक
और भी चटक
काली छाल की छटा लिये-
आ गया छा गया नीम सेनेगल में
फैलाता गाँव-गाँव
शीतल-सुगन्ध और ठंडी छाँव
और साथ लिये आया
अपना वही नाम
नीम नीम नीम ही रहा नाम नीम का-
ओलोफ भाषा को
‘हिन्दी का निराला स्नेहोपहार’
एक शब्द-एक वृक्ष !
दो महासागर और दो महाद्वीप
पार करने के बाद
चाहता तो रख लेता नीम भी
अपना कोई नया रौबीला नाम-
बॉबी या सैम या मॉन्टी...
नीम के साथ ही आया होगा सावन-
भीग रहा है डकार हरी-हरी वर्षा में,
झूम रहा है नीम झोंकों में
उसे अफ्रीका के झूलों की बढ़ती हुई पींग
और ख़ालिस अफ्रीकी कजरी का
बहुत दिनों से है इन्तज़ार-
इसलिए दुआ करो दोस्तो दुआ करो
कि रहे नाम नीम का...।
पुनःश्च - हम जैसे ही ज़रा-सा आगे बढ़े कि राह रोक कर नीम ने हमें अपनी कथा सुनायी जो भारतेन्दु युग की शैली में थी क्योंकि नीम जब 1870 ई. वर्ष में भारत से सेनेगल पहुँचा ;और जहाँ उसे नीम ही कहा जाता हैद्ध तब हिन्दी कविता की आज जितनी ‘उन्नति’ नहीं हुई थी-
नीम -
लगते तुम भी भारतवासी तुमको है परनाम।
हिन्द देस का मूल निवासी नीम हमारा नाम।।
नरवल गाँव परगना-कोड़ा जिला-जहानाबाद।
उखड़ वहाँ से सन् सत्तर में, हुए यहाँ आबाद।।
आए चढ़कर अगिनबोट में हम गोरों के संग।
अफरीका ने बड़े नेह से हमें लगाया अंग।।
सेनेगल की धरती पर जड़ पकड़ी हमने खूब।
पर आँधी में अगिनबोट तो गयी यहीं पर डूब।।
देश-देश की लूट भरी थी बोझ पाप का भारी।
लील गया सागर गोरों की फौज गयी सब मारी।।
किन्तु लुटेरे फिर आएँगे बदल-बदलकर भेस।
भेद समझना और बचाना अपना-अपना देस।।
गाँव-जवार सभी से कहना बारम्बार प्रनाम।
बड़े जतन से ऊँचा रखा है तुम सब का नाम।।