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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास/ पृष्ठ 10

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राक्षस बानर संग्राम

( छंद संख्या 48, 49 )

 (48)
अंग-अंग दलित ललित फूले किंसुक-से,
 हने भट लाखन लखन जातुधानके।

मारि कै, पछारि कै, उपारि भुजदंड चंड,
 खंडि-खंडि डारे ते बिदारे हनुमानके।

कूदत कबंधके कदम्ब बंब -सी करत,
धावत दिखावत हैं लाघौ राघौबानके।

तुलसी महेसु, बिधि, लोकपाल , देवगन,
देखत बेवान चढ़े कौतुक मसानके।48।

(49)

लोथिन सों लोहूके प्रबाह चले जहाँ-तहाँ,
मानहुँ गिरिन्ह गेरू झरना झरत हैं।

श्रोनितसरित घोर कुंजर-करारे भारे,
कूलतें समूल बाजि-बिटप परत हैं।।

सुभट-सरीर नीर-चारी भारी-भारी तहाँ,
सूरनि उछाहु, क्रूर कादर डरत हैं।

फेकरि-फेकरि फेरू फारि-फारि पेट खात,
काक-कंक बालक कोलाहलु करत हैं।49।