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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 5
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राक्षस बानर संग्राम
( छंद संख्या 38, 39 )
(38)
जो दससीसु महीधर ईस को बीस भुजा खुलि खेलनिहारो।
लोकप, दिग्गज, दानव, देव सबै सहमे सुनि साहसु भारो।
बीर बड़ो बिरूदैत बली, अजहूँ जग जागत जासु पँवारो।
सो हनुमान हन्यो मुठिकाँ गिरि गो गिरिराजु ज्यों गाजको मारो।38।
(39)
दुर्गम दुर्ग, पहारतें भारें, प्रचंड भारे, प्रचंड महा भुजदंड बने हैं।
लक्खमें पक्खर, तिक्खन तेज, जे सूरसमाजमे गाज गने हैं।।
ते बिरूदैत बली रनबाँकुरे हाँकि हठी हनुमान हने हैं।
नामु लै रामु देखावत बंधुको घूमत घायल घायँ घने हैं।39।