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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 6
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राक्षस बानर संग्राम
( छंद संख्या 40, 41 )
(40)
हाथिन सों हाथी मारे, घोरेसों सँघारे घोरे,
रथनि सों रथ बिदरनि बलवानकी।।
चंचल चपेट, चोट चरन चकोट चाहें,
हहरानी फौजें भहरानी जातुधानकी।।
बार-बार सेवक-सराहना करत रामु,
‘तुलसी’ सराहै रीति साहेब सुजानकी।
लाँबी लूम लसत, लपेटि पटकत भट,
देखौ देखौ , लखन! हनुमानकी।40।
(41)
जबकि दबोरे एक, बारिधि में बोरे ऐक,
मकन महीमें , एक गगन उड़ात हैं।
पकरि पछाारे कर, चरन उखारे एक,
चीरि-फारि डारे, एक मीजि मारे लात हैं।।
‘तुलसी’ लखत , रामु , रावनु, बिबुध , बिधि,
चक्रपानि, चंडीपति, चंडिका सिहात हैं।।
बड़े-बड़े , बनाइत बीर बलवान बड़े,
जातुधान , जूथप निपाते बातजात हैं।41।