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राजनीतिज्ञ / कुमार मुकुल

विचलन तो दूर की बात है

डर की एक लौ भी नहीं छूती उन्हें

उन्होंने पढ़ रखी है गीता

वे मार सकते हैं स्वजनों को

वे जानते हैं तुम्हें

कि तुम लाचार हो कितने कि विनम्र हो

जो अक्सर हास्य

रीझे तो व्यंग्य कर सकते हो।