राजा जनक जी चिठिया लिखि भेजल / अंगिका लोकगीत
राजा जनक का पत्र मिलते ही दशरथ अच्छी तरह बरात सजाकर जनकपुर आये। राम जैसे-जैसे मंडप पर पहुँचते गये वे भाँट, चेरी आदि से सीता के विषय में पूछते गये। सबसे यही सुनकर कि सीता सूर्य की ज्योति है और उसके रूप के सामने चाँद छिप जाते हैं, वे सीता पर मोहित होते गये। बरात दरवाजे पर पहुँचने पर सबने चारों भाइयों का परिचय पाया। अन्त में, राम ने धनुष तोड़कर सीता से विवाह किया।
राजा जनक जी चिठिया लिखि भेजल, देहो राजा दसरथ हाथ हे।
आहे रामजी बिआहे जनकपुर जैहें, भले भाँति साजु बरियात हे॥1॥
हाथियो साजल घोड़बो साजल, साजल लोग बरियात हे।
आहे रामजी के घोड़बा, भले भाँति साजल, साजि चलल बरियात हे॥2॥
जब सीरी रामचंदर बगिया बीच आयल, भँटवा पोथिया लेने<ref>लिये हुए</ref> ठाढ़ हे।
देबौ रे भँटवा चढ़ने के घोड़बा, हमरे आगु सीता बखानु हे॥3॥
कथि हमें सीता बखानु राजा दसरथ, सीता सुरुज केरा जोति हे।
सीता के रूप चाँन छपित भेल, मुरुछि<ref>मूर्च्छित होकर</ref> गिरत सिरी राम हे॥4॥
जब बरिअतिया दुअरिया पर आयल, चेरिया कलसा लेने ठाढ़ हे।
देबौ गे चेरिया सासेने गेरुलिया, सीता के करु न बखान हे॥5॥
की हमें सीता बखानु राजा दसरथ, सीता सुरुज केरा जोति हे।
सीता सुरति देखि चान छपित भेल, मुरुछि गिरत सिरी राम हे॥6॥
जब बरिअतिया माड़ब बीचे आयल, सीता झरोखा धैने<ref>पकड़े हुए</ref> ठाढ़ हे।
कौने हौदे<ref>हौदा</ref> राम कौने हौदे लछुमन, कौने हौदे भरथ कुमार हे॥7॥
अगले हौदे राम पिछले हौदे लछुमन, माँझे ठैयाँ भरथ कुमार हे।
आहे गले बजंती ओढ़ने पीतंबर, साम बरन सीरि राम हे॥8॥
रानी सुनैना चिठियो लिखि भेजल, दहुनग<ref>दे आओ</ref> कोसला रानी हाथ हे।
आहे मोढहिं धनुखा पातर रघुनन्नन, ई पति राखै भगमान हे॥9॥
हँसि हँसि रामचंदर पढ़ै पोथिया सुनैना सासु जानु हदिआहो<ref>घबराओ; चिंतित हो; निराश हो</ref> हे।
तोड़ब धनुख करब नव खंड, सीता बिआहि घर जायब हे॥10॥