राजी खुशी की मत बूझै / रामफल सिंह 'जख्मी'
राजी खुशी की मत बूझै, बन्द कर दे जिक्र चलाणा हे
दिन तै पहल्यां रोट बांध कै, पड़ै चौक म्हं जाणा हे
देखूं बाट बटेऊ ज्यूं, कोये इसा आदमी आज्या
मनै काम पै ले चालै, ज्या बाज चून का बाजा
नस-नस म्हं खुशी होवै, जे काम रोज का ठ्याज्या
इसे हाल म्हं मनै बता दे, कौण सा राजी पाज्या
नहीं दवाई नहीं पढ़ाई, नहीं मिलै टेम पै खाणा हे
देखे ज्यां सूं मैं बाट काम की, सदा नहीं मिलता हे
एक महीने म्हं कई बार तो , ना मेरा चुल्हा जलता हे
बच्चां कानी देख-देख कै, मेरा काळजा हिलता हे
रहै आधा भूखा पेट सदा, न्यू ना चेहरा खिलता हे
तीस बरस की बूढ़ी दीखूं मैं, पड़ग्या फीका बाणा हे
कदे-कदे तो हालत बेबे, इस तै भी बद्तर हो ज्यां
दूध बिना मेरे बालक, काळी चा पी कै सो ज्यां
नहीं आवती नींद रात भर, चैन मेरा कती खो ज्यां
यो सिस्टम का जुल्म मेरी, जान के झगड़े झौ ज्यां
रिश्तेदार घरां आ ज्यां तो, पड़ ज्यां सै शरमाणा हे
खाली डिब्बे पड़े घरां, ना एक जून का सामां हे
निठ्ल्ले लोग लूट-लूट कै, कठ्ठा कर रे नामा हे
वा हे रोज पहर कै जावै, पाट्या पूत पजामा हे
‘रामफल सिंह’ चक्कर खावै, मुश्किल गात थामा हे
मनै हकीकत पेश करी यो, मत ना समझो गाणा हे