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राज-काज का हाल बिगड़्ग्या / सत्यवीर नाहड़िया

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राज-काज का हाल बिगड़्ग्या, लोक लाज अर टोक नहीं
लोकतंतर म्हं तंतर हावी, जिस पै सै कोई रोक नहीं

राज-काज का हाल हुआ के, कहदूं सारी आज सुणो
नीति रही ना राजनीति म्हं, रहग्या बस इब राज सुणो
जनता मरज्या रो रो कै, ना चाल्ले इनकै खाज सुणो
घटिया राजनीति कै कारण, ना होते सीधे काज सुणो
काम हुवैं ना उनके सुणियो, जो मारैं नित धोक नहीं

राजनीति म्हं सेवक थोड़े, काम घणा सै खोटां का
रोज फळावैं लाभ अर हाणी, ध्यान रहै बस बोटां का
बड़े बड्यां तै बात करैं, ख्याल रहै ना छोट्यां का
राजनीति इब खेल हो लिया, सुणल्यो भाई नोटां का
शोकसभा म्हं आगै पावैं, हो इननै कदे शोक नहीं

नेताजी कदे एक हुये थे, इब तै घर-घर होग्ये
माणस थोड़े, नेता ज्यादा, इब इतने लीडर होग्ये
टिकते ना वैं धरती पै भई, कीड़ी कै पर होग्ये
लीडर कम अर डीलर ज्यादा, धटिया वैं नर होग्ये
खास-खास नै माळ बेचदें, बेचैं यें कदे थोक नहीं

बोटां का जब टेम आवै तो ये मिम्याते आवैंगे
एम पी, एम एल ए बणते ही, बहोत घणे गुर्रावैंगे
कै तो यें भई आंख फेर लें, कै फेर आंख दिखावैंगे
टेम इलैक्शन का आवै तो, हाथ जोड़ते पावैंगे
कह ‘नाहड़िया’ बात नुकीली, दिखती जिसकै नोक नहीं