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रातिसँ कानि रहल आकाश / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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नओ अगस्त क्रान्तिक बीतल अछि पूरा वर्ष पचास।
राखि हृदयमे कोन कल्पना कयल शीश बलिदान,
आइ ताहि बलिदानी सभहिक छटपटाइ छनि प्राण,
त्याग तपस्या छोड़ि करै छथि नेता भोग विलास॥
जन प्रतिनिधि पटना दिल्ली बसि, पीबथि रस अंगूरी,
जनताकेँ परतारथि ई कहि-‘अछि आर्थिक मजबूरी,
राखू धैर्य अवस्से पूरत सकल समाजक आश॥
घोर चरित्रक संकट, नैतिकता काटय बपहारि,
सत्य-असत्यक, धर्म-अधर्मक बीच मचल अछि मारि,
त्याग गेल पाताल, पूर्णतः आहत अछि विश्वास॥
हर्षद त्रासद बनल, कहथि थिक विरोधीक षडयन्त्र,
अरब-खरब ऋण चढ़ल माथपर जपि-जपि गान्धी मन्त्र,
अपरिग्रहक प्रसाद पापकेँ पचबक करथि प्रयास॥
जन प्रतिनिधि गण बिका रहल छथि सत्ता पक्षक हाथ,
भारत विश्वक रंगमंच पर उठा रहल अछि माथ,
पहिलुक गौरव छाड़ि, रचै छथि ई स्वर्णिम इतिहास॥
वाम, दहिन आ मध्य राजनीतिक ई तीनू बाट,
सबसँ ऊपर भेल ‘माफिया’ आ तस्कर सम्राट,
अनुशासन जनतन्त्रक शव पर रचा रहल अछि रास॥
न्यायमूर्ति भ्रष्टाचारक पथ पकड़ि चलथि निर्धोख,
जे महाभियोगक विरूद्ध सहयोग करथि भरि पोख,
से भ्रष्टाचार उन्मूलन पर दय रहल प्रकाश॥
आइ न काल्हि अवस्से करता ई देशक उद्धार,
तावत अपनालै वनबै छथि स्वर्गक फूजल द्वार,
सात पुश्त लै संचित होइतहि लै लेताह संन्यास॥
सूर्य-चन्द्र दूहू लोचनसँ टप-टप टपकय नोर,
मनक व्यथा कहबा लै पवनक व्याजेँ कम्पित ठोर,
भारत माता लै रहली अछि रहि-रहि दीर्घ निसास॥