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रात बीते हम न होंगे / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
सुनो सजनी
रात-बीते हम न होंगे
पर सुबह होगी
कोई पंछी
आम्रवन से तुम्हें टेरेगा
उसे दुलराना
जल रहा है यह दिया
जो द्वार पर
नदी में इसको सिराना
पाँव छूना
घाट पर तुमको मिले
यदि कोई जोगी
पुण्य वह
हमको मिलेगा, सच
धूप होंगे हम
हाँ, तुम्हारे पास ही होंगे
जब तुम्हारी आँख
होगी नम
हम छुएँगे तुम्हें
तुम हँसना
वह छुवन तो बेवज़ह होगी
बनोगी तुम भी
सुबह की ओस ऐसे ही
किसी दिन कल
देह हम होंगे नहीं
आकाश होंगे
या कि बहता जल
और साँसें
ये नहीं होंगी
जो रहीं ता-उम्र हैं ढोंगी