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राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 9

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राम-नाम-महिमा-8
 
(105)

आगम, बेद, पुरान बखानत मारग कोटिन, जाहि न जाने।
जे मुनि ते पुनि आपुहि आपुको ईसु कहावत सिद्ध सयाने।।

धर्म सबै कलिकाल ग्रसे , जप, जोग ,बिरागु लै जीव पराने।।
को करि सोचु मरै ‘तुलसी’ , हम जानकीनाथके हाथ बिकाने।।

(106)

धूत कहौं, अवधूत कहौं, रजपूतु कहौं , जोलाहा कहौं कोऊ।
काहूकी बेटीसोें बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।।

तुलसी सरनाम गुलामु है रामको, जाको रूचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगि कै खैबो, मसीतको सोइबो,लैबोको एकु न दैबेको दोऊ।।