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राम-लीला गान / 40 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

विवाह के बाद श्रीराम-सीता को विदा कराकर जनकपुर से अवधपुरी चले जायेंगे। इससे मिथिला-वासी नर-नारी बहुत विह्वल हैं।

लेके चलि जइबऽ हो दुलहा! जनक-किशोरी।
हम कइसे रहब हो दुलहा! मिथिला अगोरी? नाहीं प्रान रहिहन हो दुलहा! सीता बिनु मोरी।
बस ना चलत बा हो दुलहा! होता बरजोरी। बिसरत नइखे हो दुलहा! स्याम, सीता गोरी।
नइखे कहे आवत हो दुलहा! अकिल बा थोरी। रचि-रचि लागल बा दुलहा! सुरत के डोरी।
रहि जा एहीजा हो दुलहा! सुनिलऽ निहोरी। कहत ‘भिखारी’ हो दुलहा! दोऊ कर जोरी॥