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राम से अल्ला भिड़ा रस्ता दिखा / प्रेम भारद्वाज

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राम से अल्ला भिड़ा रस्ता दिखा
कटघरे में है ख़ुदा रस्ता दिखा

खेल खुलकर खेलती हिंसा यहाँ
मिट गई शर्मो हया रस्ता दिखा

बेसहारा द्रौपदी है दाँव पर
और गुम सारी सभा रस्ता दिखा

माँगता था खैर जो सबकी कबीर
पंथ बन कर रह गया रस्ता दिखा

आँख से देखा हुआ सच झूठ है
काग़ज़ी सब फैसला रस्ता दिखा

लड़ गए सतबीर अफज़ल प्रेम सब
राम औलिया रस्ता दिखा