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राशन की नदियाँ / राधेश्याम बन्धु
Kavita Kosh से
संसद की राशन
की नदियाँ किस तहख़ाने में खो जातीं ?
पानी के बदले
शब्दों की कोरी हमदर्दी दिखलातीं ?
फ़सलों का दुख कौन सुनेगा
जो है सबकी भूख मिटाती ?
क्यों विदर्भ के कृषक मर रहे
जिनकी मेहनत स्वर्ग उगाती ?
संसद की मधुऋतु
बयार भी झुग्गी तक है गन्ध न लाती ?
क्यों कपास की फ़सल लुट रही
क्यों धनिया ख़ुदक़ुशी कर रही ?
कर्जे के जुल्मों से डरकर
आत्मदाह ख़ुद कुटी कर रहीं ?
बहता रोज़ तकाबी
का जल फिर भी क्यों कुर्की है आती ?
खलिहानों में मौत उग रही
पर मुखिया-घर दावत चलती,
आज सियासत बनी तवायफ़
मंत्री के घर मुजरा करती ।
क्यों गरीब बुधिया
की जवानीं मुखिया के घर में लुट जाती ?
संसद की राशन
की नदियाँ किस तहख़ाने में खो जातीं ?