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राष्ट्राध्यक्ष / निशांत
Kavita Kosh से
एक घोड़ा था
अपने डैनों को खोले
उड़ा जा रहा था स्वपनाकश में
एक साइकिल थी
दौड़ी चली जा रही थी हवा में
ट्रिन ट्रिन की आवाज के साथ
एक मछली थी
रात को आकाश में उड़ी जा रही थी
देशों के बीच से
कुछ
अद्भुत से दिखनेवाले लोग थे
जोकरों की पोशाक में
उनके एक हाथ में पृथ्वी थी
दूसरे में एक चाबूक
रोज रात में
घोड़े को
साइकिल को
और मछली को
साँप की तरह एक बार डँसते थे वे
पृथ्वी को उछालकर
चाबूक से पिटता था मुझे किसी-किसी दिन
दिन में उनमें से कोई बौना-सा आदमी।