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रिश्ता / सुलोचना वर्मा
Kavita Kosh से
मैं ध्वनि, तो तुम लय हो
मैं जीवन, तो तुम भय हो
मैं तिश्नगी, तो तुम मय हो
मैं नींद, तो तुम शय हो
मैं वृद्धि, तो तुम वय हो
मैं युद्ध, तो तुम जय हो
मैं वाणिज्य, तो तुम क्रय हो
मैं मेहनत, तो तुम प्रय हो
आज ज़िंदगी बेसुरी सी हो चली
हर आहट से काँप जाती हूँ
इक प्यास है, बुझती ही नही
नींद में हलचल भाँप जाती हूँ
गुज़रा जमाना ठहर सा गया है
रिश्ता ये जंग हार चला है
मिल सकती हैं अब भी राहें
फिर सोचूँ कि प्यार बला है