भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिश्ते-4 / निर्मल विक्रम
Kavita Kosh से
कुछ रिश्ते
टूट जाते हैं
छूट जाते हैं
लम्बे रास्ते ख़त्म हो जाते हैं
चलते-चलते थक जाता है मनुष्य
रह जाते हैं काले अंधेरे साए जैसे
यादों के लाल सुनहरी ख़्वाब
कुछ रिश्ते टूट जाते हैं
मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव