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रिस्तो / संजय आचार्य वरुण
Kavita Kosh से
अचकची खाय
तोड़ काढ्यो
जद तूं
थारै अर म्हारै बिचाळै रो
हरेक रिस्तो
पण
रिस्तो फेर भी हो
आपां रै बिच्चै....
कोई रिस्तो नीं होवण रो रिस्तो।