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रीत रही है प्रतिपल/राणा प्रताप सिंह
Kavita Kosh से
रीत रही हैं प्रतिपल अपनी गंगा माई
उनको भी ज्ञान हुआ, मानवता बौराई
शासित और शासक में
आज बड़ी अनबन है
चीर हरण हो रहा
कान्हा तो मधुबन है
नई कोंपलें नम हैं
किन्तु जड़ें बेदम हैं
स्वार्थ के तराजू का
हुआ संतुलन कम है
आज के विचारों में बची नहीं गहराई
मेरुदंड में भीषण
मची हुई कंपन है
शिरा और धमनी में
बेअदबी उलझन है
शगल ये पुराना है
इसे बदल जाना है
नव चेतन के पट की
सांकल खुलवाना है
बाते ठुकरानी है अब तक जो मनवाई