भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रूखे स्‍नान के कारण खुरखुरी एक घुँघराली / कालिदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  रूखे स्‍नान के कारण खुरखुरी एक घुँघराली

नि:श्‍वासेनाधरकिसलयक्‍लेशिना विक्षिपन्‍तीं
     शुद्धस्‍नानात्‍परुषमलकं नूनमागण्‍डलम्‍बम्।
मत्‍संभोग: कथमुपनयेत्‍स्‍वप्‍नजो∙पीति निद्रा-
     माकाङ्क्षन्‍तीं नयनसलि‍लोत्‍पीडरूद्धात्‍वकाशाम्।।

रूखे स्‍नान के कारण खुरखुरी एक घुँघराली
लट अवश्‍य उसके गाल तक लटक आई
होगी। अधर पल्‍लव को झुलसानेवाली
गर्म-गर्म साँस का झोंका उसे हटा रहा
होगा। किसी प्रकार स्‍वप्‍न में ही मेरे साथ
रमण का सुख मिल जाए, इसलिए वह नींद
की चाह करती होगी। पर हा! आँखों में
आँसुओं के उमड़ने से नेत्रों में नींद की
जगह भी वहाँ रुँध गई होगी।